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श्रीमद्भगवद्गीता भगवान श्रीकृष्ण का मानव जीवन उपयोगी दिव्य उपदेश है। इस संस्करण में मूल श्लोक, भाषा-टीका, संधि-अवयव सहित मोटे अक्षरों मे दी गयी है।
गीता पर इस टीका का प्रयोजन है गीता के १८ अध्यायों में निहित उस एक सूत्र को पकड़ने का प्रयास करना जिसमें गीता के ७०० श्लोक मणियों के सदृश्य पिरोए हुए हैं। ‘सर्वमिदं प्रोतं सूत्रे मनी गणा एव – यह सारा (जगत) सूत्र में मणियों के सदृश्य मुझ (परमात्मा) में गुथा हुआ है’- भगवान कृष्ण के इन वचनों के अनुरूप उनके वचन भी एक सूत्र में बंधे होने चाहिए, और भगवत गीता में हमें उस सूत्र को ही देखने का प्रयास करना चाहिये। उस सूत्र को बिना जाने भगवान के वचन रूप मणियों को जीवन में धारण करना अत्यंत कठिन जान पड़ता है। गीता को यदि हम अपने जीवन के लिए उपयोगी बनाना चाहते हैं, गीता को जीवन में धारण करना चाहते हैं, तो उस सूत्र में पिरोई हुई मणियों की माला को ही धारण करना होगा।
वस्तुतः गीता विभिन्न विषयों, विचारों अथवा साधनाओं का वर्णन करने वाला संग्रहात्मक ग्रंथ नहीं है। वह ‘स्वरुचि भोज’ नहीं है कि जिसे जो प्रिय लगे उसे वह चुन ले। गीता एक सूत्र में बंधा एक शास्त्रीय ग्रंथ है। गीता के प्रत्येक अध्याय के अंत में कहे गए ‘संकल्प वाक्य’ में उसे योग शास्त्र कहा गया है। किसी ग्रंथ को शास्त्र तभी कहा जाता है जब सर्वप्रथम उसमें कोई समस्या प्रस्तुत की गई हो, फिर समस्या का कारण बताया गया हो और तब उसका सुव्यवस्थित क्रम बद्ध रूप में निवारण प्रस्तुत किया गया हो। इस प्रकार शास्त्रीय ग्रंथ एक सूत्र में बंधा हुआ होता है। गीता शास्त्र है क्योंकि इसमें प्रारंभ में ही एक समस्या स्पष्ट रूप से रख दी गई है। समस्या है कर्तव्य निर्णय में अर्जुन की भ्रम और अनिर्णय की स्थिति। समस्या का कारण था उसकी रागात्मक मोह दृष्टि। श्रीकृष्ण भगवान ने अर्जुन की मोह दृष्टि का निवारण जिस प्रकार किया वह हीं क्रमबद्ध रूप में गीता में वर्णित है।
ASIN : B087NQLWW7
Publisher : Punit Advertising Private Limited; 2020th edition (24 April 2020)
Language : Hindi
File size : 1.2 MB
Screen Reader : Supported
Enhanced typesetting : Enabled
Word Wise : Not Enabled
Print length : 562 pages
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