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मुंबई! भारत के पश्चिमी तट पर बसा एक महानगर। मुंबई की महिमा का वर्णन कैसे किया जाए? भारत का सबसे अधिक जनसंख्या वाला शहर, महाराष्ट्र की राजधानी, भारत की आर्थिक राजधानी, दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा महानगर, भारत और दक्षिण, पश्चिम एवं मध्य एशिया में सबसे अधिक वार्षिक सकल आय वाला शहर, भारत की समुद्री मालवाहत में ५०% योगदान देने वाला बंदरगाह, और भारतीय उद्योगों का केंद्र ये सभी उपाधियां इस शहर को प्राप्त हैं।
हमेशा जागा रहने वाला शहर, ऐसा भी इस महानगर की ख्याति है। इस मुंबई में कोई भी कभी भूखा नहीं सोता। हर जगह हार मान चुके लोग भी मुंबई आते हैं और पैसा व प्रसिद्धि हासिल करते हैं। मुंबई का यही जादू है। मुंबई को मायानगरी कहा जाता है क्योंकि एक बार यहां आने के बाद कोई इसे छोड़ने के लिए तैयार नहीं होता; वह हमेशा के लिए यहीं का यानी ‘मुंबईकर’ बन जाता है।
मुंबई की यह ख्याति रातोंरात नहीं बनी। इसके लिए पिछले दो हज़ार वर्षों में अनेकों ने अपनी मेहनत से इसे सींचा। असंख्य राजवंश यहां आए, मुंबई के विकास में योगदान दिया, और समय के साथ विलुप्त हो गए। अंग्रेज़ों के आने से पहले भी सैकड़ों वर्षों तक मुंबई के द्वीप पर कई राज्य स्थापित हुए थे, जिनके प्रमाण आज भी यहां की गुफाओं, किलों और मंदिरों में दिखते हैं। मुंबई के वलकेश्वर और बाणगंगा का उल्लेख तो स्कंदपुराण में भी मिलता है।
हालांकि वर्तमान में राज्य और देश की आर्थिक प्रगति में मुंबई का योगदान सबसे अधिक है, लेकिन इस स्थान को पाने के लिए मुंबई ने कई राजनीतिक, सांस्कृतिक और धार्मिक उलटफेर देखे हैं। इसने कई बार अपना नाम बदलते हुए देखा। मुंबई ने निर्माणकर्ताओं को देखा है और विनाशकर्ताओं को भी। मुंबई का प्राचीन इतिहास दबा हुआ है। इसका मुख्य कारण यह है कि पिछले दो हज़ार वर्षों में इस द्वीप ने कई राजनीतिक परिवर्तन देखे, और इसके नाम समय-समय पर बदलते रहे। मुंबई नाम भी इस शहर को चौदहवीं शताब्दी में मिला था। इसका उल्लेख ‘मुंबादेवी माहात्म्य’ में है।
मुंबई का सबसे प्राचीन नाम ‘पुरी’ था और यह कोकण की प्राचीन राजधानी थी। ‘पुरी’ से कोकण को ‘पुरीकोंकण’ के नाम से जाना जाता था। यह पुरी तीनों तरफ से समुद्र से घिरी हुई थी, और इसका पहला उल्लेख चौथी शताब्दी में मिलता है। मुंबई को ‘पुरी’ के साथ ‘कपर्दि द्वीप’ या ‘कवड़ी द्वीप’ नामों से भी जाना जाता था। इसके बाद प्रताप बिंब ने इसे ‘महिकावती’ और ‘बिंबस्थान’ नाम दिया। भीमदेव ने इसे ‘भीमपुरी’ कहा। मुंबादेवी के आशीर्वाद से यहां के लोगों ने मुबारक खिलजी का शासन समाप्त किया और इसे ‘मुंबई’ या ‘मुंबापुरी’ कहा जाने लगा। गुजरात सुल्तान के समय इसे ‘मानबाई’ के नाम से जाना गया।
फिर पुर्तगालियों ने आकर मुंबई का नाम ‘बॉम्बे’ कर दिया। उन्होंने न केवल इसका नाम बदला बल्कि इसके स्वरूप को भी नकारात्मक रूप से बदलने की कोशिश की। उन्होंने मुंबई की पुरानी पहचान को नष्ट करने का प्रयास किया, और इसमें वे कुछ हद तक सफल भी रहे। इसके बाद अंग्रेज़ आए और उन्होंने २८६ वर्षों तक यहां शासन किया। उन्होंने भी मुंबई में कई बदलाव किए, लेकिन उनके प्रयास सकारात्मक थे। उन्होंने विकास कार्यों के साथ पुरानी चीज़ों को सहेजने का प्रयास किया।
उत्तर कोकण के ऐतिहासिक साधनों में बार-बार ‘पुरी’ का उल्लेख मिलता है। दुर्भाग्यवश, आज तक उसकी स्थान-निर्धारण नहीं हो पाई है। लेकिन, ‘पुरी’ का ऐतिहासिक विवरण मुंबई से पूरी तरह मेल खाता है। मुंबई द्वीप पर वलकेश्वर और बाणगंगा जैसे तीर्थस्थल, जिनका उल्लेख स्कंदपुराण में है, यह साबित करते हैं कि अंग्रेज़ों के आने से पहले मुंबई निर्जन नहीं थी।
इस पुस्तक में पहली बार प्रमाण के साथ यह निष्कर्ष प्रस्तुत किया गया है कि मुंबई ही प्राचीन कोकण की राजधानी ‘पुरी’ थी। यह पुस्तक मुंबई के प्राचीन इतिहास पर आधारित है और इसका उद्देश्य यह बताना है कि मुंबई ही प्राचीन कोकण की राजधानी ‘पुरी’ थी। आशा है कि यह पुस्तक मुंबई के प्राचीन इतिहास के शोध को नई दिशा देगी और भविष्य में और भी प्रमाण सामने आएंगे। ऐसा कहा जाता है कि लक्ष्मी का निवास समुद्र में होता है और भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई, लक्ष्मी का ही स्वरूप है। सैकड़ों साल पहले कवि रविकीर्ति ने मुंबई को पश्चिमी समुद्र की लक्ष्मी की उपमा दी थी, जो आज भी सटीक सिद्ध होती है। मुंबई का प्राचीन इतिहास दुनिया के सामने आए और इसके विकास में योगदान देने वालों की महत्ता सभी समझें इसी ईमानदार उद्देश्य से यह पुस्तक लिखी गई है। मुंबई से प्रेम करने वाले पाठकों को यह पुस्तक पसंद आएगी।
ASIN : B087KM7T9R
Language : Hindi
File size : 9.8 MB
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Print length : 78 pages